मुझसे मिलने की आरज़ू तूने की होगी!!

माथे पे तेरे ‘एक‘ शिकन तो रही होगी  मुझसे मिलने की आरज़ू तूने की होगी!! ज़हन मैं जो भी शिकवे थे तेरे  मेरे मातम से उसमे कमी तो हुई होगी मुझसे मिलने की...

विध्वंस!

है सोच का सागर भी असमंजस में पड़ा  क्या कभी हो पायेगा इस शोषक समाज का भला? स्वार्थ की धुंद में सुलझन का एक तट दिखाई तो दिया है परन्तु इतिहास गवाह है की परोपकार ...

छेह का पहर!

छेह का पहर खड़का, मेरा दिल धड़का हो ना हो आवाज़ है ये किसीकी, कोई मुसीबत के मारे की  मुझे बुलाता है मदद के लिए, पर कहाँ, कोई अंदाजा नहीं आवाज़ चीख में बदली, चीख ...

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