Manan!

रुआंसा हृदय, वेदना भरा वो हर-एक पल व्यापक था उन दिनों, मुझे भूला कर निकल पड़ा था तू घर से, स्वायत्त ! पीठ के बल चरमराते गिरे, सपने निष्फल। अकुलाहट की टीस तुझे भ...

मेरे दोस्त !

कौन बदला, हम या वक़्त मेरे दोस्त, शब्दों के माईने या हमारी सोच इंकार मत करना इससे आज, जब मैं कहता हूँ, कि किसी दिन सहसा तुम्हे भी एहसास होता है; समझदार बनने की द...

लकड़ी का मकान!

लम्बी सीधी खड़ी इमारतों के एक छोटे स्पाट घरोंदे में बंद, अक़सर याद किया करता हूँ वो लकड़ी का मकान। जिसमे गिरते-पड़ते स्कूल से भागकर पहुँचते थे, जहां कमरे की खुली खि...

आईना!

आईने का रहस्य बहुत पेचीदा है, इसमें जो अक्स है झलकता वो जिंदा है तुम्हारा हुलिया बयान है करता, इसलिए उसके क़द्रदान हो तुम  लेकिन उस दुनिया के हमशक्ल के, वजूद से...

मौक़ा ख़ास है!

मौक़ा ख़ास है, शामिल है जुबां पर तेरा नाम जो वाकई में इम्तियाज़ है अफ़सोस है ज़रूर, किन्ही ना गुज़रे लम्हों का जो होते तो बरहक़ करता में मंज़ूर इस मौक़े–ख...

खौफ़नाक रातें !

अब शूमयत से बिलकुल ना रहोगे अनजान  करवाता हूँ शूम रातों से तुम्हारी पहचान! सियाह रात में शहाब की भी क्या अहमियत  जब ख़ुद महताब की फ़ितरत में आ जाए बेहमियत! वक़्...

बे-इन्तेहाँ सब्र के बाद!

बे–इन्तेहाँ सब्र के बाद, फरमान हुआ है ये जारी  तेरा ख़याल और ना होगा, ना होगी और तेरी तरफ़दारी! आख़िर हद होती है रंज की, बेसब्र दिल का लिहाज़ तो कर  रिक्कत...

आख़िरी दम!

आख़िरी दम भरते हैं ये ख़यालात चंद साँसों के भरोसे टिके थे जो  सहमे हुए से हैं अब कुछ हालत  तेरी यादों के सहारे ज़िंदा थे जो  क़दम अकसर फिसल ही जाते हैं  उस डगर क...

तू अब याद नहीं आता!

कभी कभी ख्यालों में सोते–जागते कहीं खाबों में ज़िक्र अकसर जो तेरा था हो जाता कसम से, तू अब याद नहीं आता कभी खाली सूने गुज़रते पलों में निढाल बैठे ज़हन के खंड...

सूर्योदय!

रोज़ सुबह आती है, मुझे नींद के आग़ोश में पाती है सूर्योदय कभी ना देख पाता हूँ, आज–आज करते–करते निराश रह जाता हूँ उजालों में सांस लेने के बावजूद, अन्...

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