आख़िरी दम!

आख़िरी दम भरते हैं ये ख़यालात

चंद साँसों के भरोसे टिके थे जो 

सहमे हुए से हैं अब कुछ हालत 

तेरी यादों के सहारे ज़िंदा थे जो 

क़दम अकसर फिसल ही जाते हैं 

उस डगर का ज़िक्र होने पर 

कुछ अलफ़ाज़ अनकहे रह जाते हैं 

तेरी अनचाहि ख़ामोशी कर 

दस्तूरज़िन्दगी से दोस्त, हम वाकिफ़ हैं 

तेरा यूँ जाना बिलकुल मुनासिब न था 

आरज़ूज़िन्दगी के हम भी क़ायल हैं 

अफ़सोस तेरे लामकां का पता हासिल न था 

पनपती हैं रोज़ दिल मैं नयी तम्मानाएं 

जिन्हें मसल देता है ये ज़ालिम वक़्त 

तेरी महक लाती हैं अब तलक जो हवाएं 

बुरादा बना देती है उन्हें ये दीमक सी हक़ीकत

Ridiculous Man
Well I'm... A theatre actor, director and a writer... I've an avid interest in philosophy and often write my random take on different aspects of life... I love to write poems and play guitar!

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