मेरे दोस्त !

कौन बदला, हम या वक़्त मेरे दोस्त,

शब्दों के माईने या हमारी सोच

इंकार मत करना इससे आज, जब मैं कहता हूँ,

कि किसी दिन सहसा तुम्हे भी एहसास होता है;

समझदार बनने की दौड़ में बहुत खोया है,

वादे टूटे हैं और कदम-कदम अनजाने में कोई दिल तोड़ा है।

याद नहीं की तुम मैं, कई और साथी

किया करते थे जो बातें

बेमतलब जान पड़ेंगी आज

गर हमी में से कोई वो दोहरादे।

आसान था जीवन का अर्थ तब,

आज जो मुश्किलें पैरों तले ज़मीन खिसकाती है,

जिनका ख़याल भी तब दूर से ना गुज़रा था

आज जीवन के अनोखे दाव-पेच सिखलाती है।

प्रफ्फुलित और आनंद में मलीन

आश्वस्त थे कि वो मासूम स्वभाव रहेगा निर्जर,

पर कोसो दूर का सफर जो तय हुआ

धुँधला जाते हैं यादों में वो मंज़र।

कभी भूले भटके से कभी स्मरण आये,

तो इन तकनिकी करिश्मों की मदद से

वापिस चलते हैं उस पथ सलाम करने,

विभोर हुई आँखों, दो आंसू और एक सिसकी से।

September 9th, 2015

Ridiculous Man

Ridiculous Man
Well I'm... A theatre actor, director and a writer... I've an avid interest in philosophy and often write my random take on different aspects of life... I love to write poems and play guitar!

Leave a Comment

Your email address will not be published.

This function has been disabled for Ridiculous Man.