आख़िरी दम!
आख़िरी दम भरते हैं ये ख़यालात चंद साँसों के भरोसे टिके थे जो सहमे हुए से हैं अब कुछ हालत तेरी यादों के सहारे ज़िंदा थे जो क़दम अकसर फिसल ही जाते हैं उस डगर का ज़िक्र होने पर कुछ अलफ़ाज़ अनकहे रह जाते हैं तेरी अनचाहि ख़ामोशी कर दस्तूर–ए–ज़िन्दगी से दोस्त, हम वाकिफ़ हैं तेरा यूँ जाना बिलकुल मुनासिब न था आरज़ू–ए–ज़िन्दगी के हम भी क़ायल हैं अफ़सोस तेरे लामकां का पता हासिल न था …