आख़िरी दम!

आख़िरी दम भरते हैं ये ख़यालात चंद साँसों के भरोसे टिके थे जो  सहमे हुए से हैं अब कुछ हालत  तेरी यादों के सहारे ज़िंदा थे जो  क़दम अकसर फिसल ही जाते हैं  उस डगर का ज़िक्र होने पर  कुछ अलफ़ाज़ अनकहे रह जाते हैं  तेरी अनचाहि ख़ामोशी कर  दस्तूर–ए–ज़िन्दगी से दोस्त, हम वाकिफ़ हैं  तेरा यूँ जाना बिलकुल मुनासिब न था  आरज़ू–ए–ज़िन्दगी के हम भी क़ायल हैं  अफ़सोस तेरे लामकां का पता हासिल न था …

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तू अब याद नहीं आता!

कभी कभी ख्यालों में सोते–जागते कहीं खाबों में ज़िक्र अकसर जो तेरा था हो जाता कसम से, तू अब याद नहीं आता कभी खाली सूने गुज़रते पलों में निढाल बैठे ज़हन के खंडरों में भूले भटके तू गुज़र जो था जाता कसम से, तू अब याद नहीं आता अरमानों की बिसात प रहूँ चढ़ा पस्त…

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सूर्योदय!

रोज़ सुबह आती है, मुझे नींद के आग़ोश में पाती है सूर्योदय कभी ना देख पाता हूँ, आज–आज करते–करते निराश रह जाता हूँ उजालों में सांस लेने के बावजूद, अन्धकार से घिरा रह जाता हूँ आँखें होते हुए भी, सच्चाई को अनदेखा कर रहा हूँ सिर्फ नाम मात्र ही ज़िंदा हूँ, वरना घुट–घुट के मर…

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मुझसे मिलने की आरज़ू तूने की होगी!!

माथे पे तेरे ‘एक‘ शिकन तो रही होगी  मुझसे मिलने की आरज़ू तूने की होगी!! ज़हन मैं जो भी शिकवे थे तेरे  मेरे मातम से उसमे कमी तो हुई होगी मुझसे मिलने की आरज़ू तूने की होगी!! आज़ाद होने की चाह थी तेरी शायद पर होने से आज़ुर्दगी ज़रूर हुई होगी  मुझसे मिलने की आरज़ू तूने की होगी!! सीने से लगाना…

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ज़िन्दगी-ऐ-हसीं में लौट आ!!

ज़िन्दगी–ऐ–हसीं को तू आ शौक़ फ़रमा आख़िर तेरी ग़ुमनामी में क्या रखा है, ख़ाबे–ऐ–दिल को तू कर दे बयान बेफ़िजूल इस मनमानी में क्या रखा है!! सही ग़लत के ये फ़लसफ़े मत मान आयते–ऐ–पाक़ में क्या रखा है, बुज़ू कर वापस अपने घर आ ख़ुदा के दर में क्या रखा है!! दिल–ऐ–बेचैन से तू बाबस्ता…

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विध्वंस!

है सोच का सागर भी असमंजस में पड़ा  क्या कभी हो पायेगा इस शोषक समाज का भला? स्वार्थ की धुंद में सुलझन का एक तट दिखाई तो दिया है परन्तु इतिहास गवाह है की परोपकार आज तक निस्वार्थ हुआ है  दूसरों के तिल को भी बिल माना  अपने बिल समान दोष को भी गुण जाना …

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छेह का पहर!

छेह का पहर खड़का, मेरा दिल धड़का हो ना हो आवाज़ है ये किसीकी, कोई मुसीबत के मारे की  मुझे बुलाता है मदद के लिए, पर कहाँ, कोई अंदाजा नहीं आवाज़ चीख में बदली, चीख कानो में गूंजती  बैन करता है कोई ज़ोर से, पर मालूम नहीं किस ओर से नज़र को में भगाता चारों…

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